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Showing posts from July, 2020

श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र

श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भगवान् शिव की स्तुति हेतु विरचित है। इसका उल्लेख श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में आता है।                         ॥ अथ रुद्राष्टकम् ॥ नमामीशमीशान निर्वाणरूपम्। विभुम् व्यापकम् ब्रह्मवेदस्वरूपम्। निजम् निर्गुणम् निर्विकल्पम् निरीहम्। चिदाकाशमाकाशवासम् भजेऽहम् ॥१॥ निराकारमोंकारमूलम् तुरीयम्। गिराज्ञानगोतीतमीशम् गिरीशम्। करालम् महाकालकालम् कृपालम्। गुणागारसंसारपारम् नतोऽहम् ॥२॥ तुषाराद्रिसंकाशगौरम् गभीरम्। मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम्। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारुगंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥३॥ चलत्कुण्डलम् भ्रूसुनेत्रम् विशालम्। प्रसन्नाननम् नीलकण्ठम् दयालम्। मृगाधीश चर्माम्बरम् मुण्डमालम्। प्रियम् शंकरम् सर्वनाथम् भजामि ॥४॥ प्रचण्डम् प्रकृष्टम् प्रगल्भम् परेशम्। अखण्डम् अजम् भानुकोटिप्रकाशम्। त्रयः शूलनिर्मूलनम् शूलपाणिम्। भजेऽहम् भवानीपतिम् भावगम्यम् ॥५॥ कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारि। चिदानन्द सन्दोह मोहापहारि। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि ॥६॥ न याव...

मनोवांछित फल देने वाला यह दिव्य स्त्रोत्र

               श्री शिव पंचाक्षर स्त्रोत नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ।।१ मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय । मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय, तस्मै मकाराय नम: शिवाय ।।२ शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नम: शिवाय ।।३ वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय । चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै वकाराय नम: शिवाय ।।४   यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै यकाराय नम: शिवाय ।।५         पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।          शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।।

इस स्त्रोत्र के पाठमात्र से शीघ्र प्रसन्न होते हैं भगवान भोलेनाथ (Shiv Stuti) )

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श्री शङ्कराचार्य कृतं - शिव स्वर्णमाला स्तुति। (Shiv Swarnamala Stuti )  साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ ईशगिरीश नरेश परेश महेश बिलेशय भूषण भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ उमया दिव्य सुमङ्गल विग्रह यालिङ्गित वामाङ्ग विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ ऊरी कुरु मामज्ञमनाथं दूरी कुरु मे दुरितं भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ ॠषिवर मानस हंस चराचर जनन स्थिति लय कारण भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ अन्तः करण विशुद्धिं भक्तिं च त्वयि सतीं प्रदेहि विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ करुणा वरुणा लय मयिदास उदासस्तवोचितो न हि भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ जय कैलास निवास प्रमाथ गणाधीश भू सुरार्चित भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ झनुतक झङ्किणु झनुतत्किट तक शब्दैर्नटसि महानट भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ धर्मस्थापन दक्ष त्र्यक्ष गुरो दक्ष यज्ञशिक्षक भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ बलमारोग्यं चायुस्त्वद्गुण रुचितं चिरं प्र...

शिव जी की आरती /ॐ जय शिव ओंकारा Om Jay Shiv OmKara

ॐ जय शिव ओंकारा मन भज शिव ओंकारा  ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव ...॥ दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। तीनो रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥ अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी । चंदन मृगमद सोहे भाले शुभकारी॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे । सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर  महादेव...॥ कर मध्ये  सुकमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता । जगकर्ता जगहर्ता जगपालनकर्ता ॥ ॐहर हर हर महादेव...॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥ काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी । नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव ...॥ त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावे । कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

मनचाहा धन देता है संकटनाशन गणेश स्तोत्र अमीर बनाता है संकटनाशन गणेश स्तोत्र का जप

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          ||  श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र || मनचाहे धन की प्राप्ति हेतु श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति पर ग्यारह दुर्वा चढ़ाकर 'संकटनाशन गणेश स्तोत्र' के 11 पाठ करें। प्रस्तुत है श्री गणेश का लोकप्रिय संकटनाशन स्तोत्र : प्रणम्यं शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम। भक्तावासं स्मरैनित्यमायुष्कामार्थसिद्धये।।1।। प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम। तृतीयं कृष्णपिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।। लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।।3।। नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।। द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्।।5।। विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।। जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।। अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत। तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।। ।।श्री नारदपुराणे संकटनाशनं नाम गणेशस्तोत्रं संपूर्णम्।।