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Showing posts from June, 2020

Shri Narayan Kavach : श्री नारायण कवच

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Shri Narayan Kavach : श्री नारायण कवच ।।राजोवाच।। यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान्। क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम्।।१ भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम्। यथाssततायिनः शत्रून् येन गुप्तोsजयन्मृधे।।२ राजा परिक्षित ने पूछाः भगवन् ! देवराज इंद्र ने जिससे सुरक्षित होकर शत्रुओं की चतुरङ्गिणी सेना को खेल-खेल में अनायास ही जीतकर त्रिलोकी की राज लक्ष्मी का उपभोग किया, आप उस नारायण कवच को सुनाइये और यह भी बतलाईये कि उन्होंने उससे सुरक्षित होकर रणभूमि में किस प्रकार आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की ।।१-२ ।।श्रीशुक उवाच।। वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते। नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु।।३ श्रीशुकदेवजी ने कहाः परीक्षित् ! जब देवताओं ने विश्वरूप को पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्र के प्रश्न करने पर विश्वरूप ने नारायण कवच का उपदेश दिया तुम एकाग्रचित्त से उसका श्रवण करो ।।३ विश्वरूप उवाचधौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ् मुखः। कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः।।४ नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते। पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि।।...

“श्री रावण कृतं सम्पूर्ण शिव तांडव स्तोत्र”

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जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले                             गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं                    चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥ जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी            विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।          धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके              किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥ धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर                  स्फुरद्दिगंतसंतति: प्रमोद मानमानसे।            कृपाकटाक्षधोरिणी निरुद्धदुर्धरापदि                  क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोद मेतु वस्तुनि ॥३॥ जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा                कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्त...

*🌹अथ शिव महिम्न स्तोत्रम् 🌹*

*महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी* *स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः* *अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्* *ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः* हे हर !!! आप प्राणी मात्र के कष्टों को हराने वाले हैं। मैं इस स्तोत्र द्वारा आपकी वंदना कर रहा हूं जो कदाचित आपके वंदना के योग्य न भी हो पर हे महादेव स्वयं ब्रह्मा और अन्य देवगण भी आपके चरित्र की पूर्ण गुणगान करने में सक्षम नहीं हैं। जिस प्रकार एक पक्षी अपनी क्षमता के अनुसार ही आसमान में उड़ान भर सकता है उसी प्रकार मैं भी अपनी यथाशक्ति आपकी आराधना करता हूं। *अतीतः पंथानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः* *अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि* *स कस्य स्तोत्रव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः* *पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः* हे शिव !!! आपकी व्याख्या न तो मन, ना ही वचन द्वारा ही संभव है। आपके सन्दर्भ में वेद भी अचंभित हैं तथा नेति नेति का प्रयोग करते हैं अर्थात यह भी नहीं और वो भी नहीं... आपका संपूर्ण गुणगान भला कौन कर सकता है? यह जानते हुए भी कि आप आदि व अंत रहित हैं परमात्मा का गुणगान कठिन है मैं आपकी वंदना करता हूं। *मधुस्फीता व...

60 संवत्सरों के नाम

*क्या आप जानते हैं 60 संवत्सरों के नाम...* वर्ष को संवत्सर कहा जाता है। जैसे प्रत्येक माह के नाम होते हैं उसी तरह प्रत्येक वर्ष के नाम अलग अलग होते हैं। जैसे बारह माह होते हैं उसी तरह 60 संवत्सर होते हैं। संवत्सर अर्थात बारह महीने का कालविशेष। संवत्सर उसे कहते हैं, जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हों। भारतीय संवत्सर वैसे तो पांच प्रकार के होते हैं। इनमें से मुख्यतः तीन हैं- सावन, चान्द्र तथा सौर।   *1. सावन*- यह 360 दिनों का होता है। संवत्सर का मोटा सा हिसाब इसी से लगाया जाता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है। *2.चान्द्र-* यह 354 दिनों का होता है। अधिकतर माह इसी संवत्सर द्वारा जाने जाते हैं। यदि मास वृद्धि हो तो इसमें तेरह मास अन्यथा सामान्यतया बारह मास होते हैं। इसमें अंगरेजी हिसाब से महीनों का विवरण नहीं है बल्कि इसका एक माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक या कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से पूर्णिमा तक माना जाता है। इसमें प्रथम माह को अमांत और द्वितीय माह को पूर्णिमान्त कहते हैं। दक्षिण भारत में अमांत और पूर्णिमांत माह का ही प्रचलन है। धर्म-कर्म, तीज-त्योहार और लोक-व...

लिंगाष्टकम्

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ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंग निर्मलभासित शोभितलिंगम । जन्मजदु:खविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।1।। देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम । रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।2।। सर्वसुगंधिसुलेपित लिंगं बुद्धि विवर्धनकारणलिंगम । सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम ।।3।। कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपति वेष्टित शोभितलिंगम । दक्षसुयज्ञविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम ।।4।। कुंकुमचन्दनलेपितलिंगंं पंकजहारसुशोभितलिंगम । संचितपापविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदा शिवलिंगम ।।5।। देवगणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम । दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगम पत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।6।। अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम सर्वसमुद्भवकारणलिंगम । अष्टदरिद्र विनाशितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।7।। सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम सुरवनपुष्प सदार्चितलिंगम । परात्परपरमात्मकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।8।। लिंगाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।।9।।

Kashi vishwanath ji

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यज्ञ क्या है, कितने प्रकार का होता है

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यज्ञ कितने प्रकार के होते है- श्रुति प्रतिपादित यज्ञो को श्रौतयज्ञ और स्मृति प्रतिपादित यज्ञो को स्मार्तयज्ञ कहते हैं! श्रौत यज्ञ में केवल श्रुति प्रतिपादित मंत्रो का प्रयोग होता है और स्मार्त यज्ञ में वैदिक पौराणिक और तांत्रिक मंन्त्रों का प्रयोग होता है। यज्ञ कितने  प्रकार के होते है- श्रुति प्रतिपादित यज्ञो को श्रौतयज्ञ और स्मृति प्रतिपादित यज्ञो को स्मार्तयज्ञ कहते हैं! श्रौत यज्ञ में केवल श्रुति प्रतिपादित मंत्रो का प्रयोग होता है और स्मार्त यज्ञ में वैदिक पौराणिक और तांत्रिक मंन्त्रों का प्रयोग होता है। मित्रों! वेदों में अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है। किन्तु उनमें पांच यज्ञ ही प्रधान माने गये हैं – 1. अग्नि होत्रम्, 2. दर्शपौर्णमास, 3. चातुर्मास्य, 4. पशुयाग, 5. सोमयज्ञ, ये पाॅंच प्रकार के यज्ञ कहे गये हैं, ये सभी  श्रुति प्रतिपादित हैं! वेदों में श्रौत यज्ञों की अत्यन्त महिमा वर्णित है। श्रौत यज्ञों को श्रेष्ठतम कर्म कहा है! कुल श्रौत यज्ञों को १९ प्रकार से विभक्त कर उनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है 1. स्मार्तयज्ञः- विवाह के अनन्तर विधिपूर्वक अग्नि का स्था...