यज्ञ क्या है, कितने प्रकार का होता है

यज्ञ कितने प्रकार के होते है- श्रुति प्रतिपादित यज्ञो को श्रौतयज्ञ और स्मृति प्रतिपादित यज्ञो को स्मार्तयज्ञ कहते हैं! श्रौत यज्ञ में केवल श्रुति प्रतिपादित मंत्रो का प्रयोग होता है और स्मार्त यज्ञ में वैदिक पौराणिक और तांत्रिक मंन्त्रों का प्रयोग होता है।

यज्ञ कितने  प्रकार के होते है- श्रुति प्रतिपादित यज्ञो को श्रौतयज्ञ और स्मृति प्रतिपादित यज्ञो को स्मार्तयज्ञ कहते हैं!
श्रौत यज्ञ में केवल श्रुति प्रतिपादित मंत्रो का प्रयोग होता है और स्मार्त यज्ञ में वैदिक पौराणिक और तांत्रिक मंन्त्रों का प्रयोग होता है।

मित्रों!
वेदों में अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है। किन्तु उनमें पांच यज्ञ ही प्रधान माने गये हैं – 1. अग्नि होत्रम्, 2. दर्शपौर्णमास, 3. चातुर्मास्य, 4. पशुयाग, 5. सोमयज्ञ, ये पाॅंच प्रकार के यज्ञ कहे गये हैं, ये सभी  श्रुति प्रतिपादित हैं! वेदों में श्रौत यज्ञों की अत्यन्त महिमा वर्णित है। श्रौत यज्ञों को श्रेष्ठतम कर्म कहा है!

कुल श्रौत यज्ञों को १९ प्रकार से विभक्त कर उनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है
1. स्मार्तयज्ञः-
विवाह के अनन्तर विधिपूर्वक अग्नि का स्थापन करके जिस अग्नि में प्रातः सायं नित्य हवनादि कृत्य किये जाते हैं, उसे स्मार्ताग्नि कहते हैं! गृहस्थ को स्मार्ताग्नि में ही पका भोजन प्रतिदिन करना चाहिये।

2. श्रौताधान यज्ञः-
विधिपूर्वक दक्षिणाग्नि स्थापना को श्रौताधान कहते हैं! इसमें पितृ संबंधी कार्य होते हैं!

3. दर्शपौर्णमास यज्ञः-
अमावस्या और पूर्णिमा को होने वाले यज्ञ को दर्श और पौर्णमास कहते हैं! इस यज्ञ का अधिकार सपत्नीक होता है। इस यज्ञ का अनुष्ठान आजीवन करना चाहिए यदि कोई जीवन भर करने में असमर्थ है तो 30 वर्ष तक तो करना चाहिए।

4. चातुर्मास्य यज्ञः-
चार-चार महीने पर किये जाने वाले यज्ञ को चातुर्मास्य यज्ञ कहते हैं!

5. पशु यज्ञः-
प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में या दक्षिणायन या उतरायण में संक्रान्ति के दिन एक बार जो पशु-याग किया जाता है, उसे निरूढ पशु-याग कहते हैं!

6. आग्रहायणेष्टि (नवान्न यज्ञ) :-
प्रति वर्ष वसन्त और शरद ऋतुओं में नवीन अन्न ( गेहूँ व चावल) से जो यज्ञ किया जाता है, उसे नवान्न कहते हैं!

7. श्रौतामणी-यज्ञ (पशुयज्ञ) :-
इन्द्र के निमित्त जो यज्ञ किया जाता है उसे श्रौतामणी यज्ञ कहते हैं!  यह इन्द्र संबन्धी पशु-यज्ञ है ! यह यज्ञ दो प्रकार का है। एक वह जो पांच दिन में पूरा होता है।
इस  श्रौतामणी यज्ञ में गोदुग्ध के साथ सुरा (मद्य) का भी प्रयोग है। किन्तु कलियुग में वर्ज्य है।
दूसरा पशुयाग कहा जाता है। क्योकि इसमें पांच अथवा तीन पशुओं की बली दी जाती है।

8. सोम यज्ञः-
सोमलता द्वारा जो यज्ञ किया जाता है उसे सोम यज्ञ कहते हैं! यह वसन्त में होता है ! यह यज्ञ एक ही दिन में पूर्ण होता है।????
इस यज्ञ में 16 ऋत्विक ब्राह्मण होते हैं।

9. वाजपेय-यज्ञः-
इस यज्ञ के आदि और अन्त में बृहस्पति नामक सोम याग अथवा अग्निष्टोम यज्ञ होता है ! यह यज्ञ शरद रितु में होता है।

10. राजसूय यज्ञः-
राजसूय याग करने के बाद क्षत्रिय राजा  चक्रवर्ती उपाधि को धारण करता है।

11. अश्वमेघ यज्ञ:-
इस यज्ञ में दिग्विजय के लिए (घोडा) छोडा जाता है। यह यज्ञ दो वर्ष से भी अधिक समय में समाप्त होता है। इस यज्ञ का अधिकार सार्वभौम चक्रवर्ती राजा को ही होता है।

12. पुरुषमेध-यज्ञ:-
इस यज्ञ की समाप्ति चालीस दिनों में होती है। इस यज्ञ को करने के बाद यज्ञकर्ता गृह त्यागपूर्वक वान प्रस्थाश्रम में प्रवेश कर सकता है।

13. सर्वमेध यज्ञ:-
इस यज्ञ में सभी प्रकार के अन्नों और वनस्पतियों का हवन होता है। यह यज्ञ चौंतीस दिनों में समाप्त होता है।

14. एकाह यज्ञ:-
एक दिन में होने वाले यज्ञ को एकाह यज्ञ कहते हैं। इस यज्ञ में एक यजमान और सौलह विद्वान होते हैं!

स्मार्त यज्ञें—
15. रुद्र यज्ञ:-
यह तीन प्रकार का होता हैं रुद्र, महारुद्र और अतिरुद्र!

रुद्र यज्ञ 5-7-9 दिन में होता है!
महारुद्र 9-11 दिन में होता हैं।
अतिरुद्र 9-11 दिन में होता है।

रुद्रयाग में 16 अथवा 21 विद्वान होते हैं!
महारुद्र में 31 अथवा 41 विद्वान होते हैं!
अतिरुद्र याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते हैं!

रुद्रयाग में हवन सामग्री 11 मन, महारुद्र में 21 मन अतिरुद्र में 70 मन हवन सामग्री लगती है।

16. विष्णु यज्ञ:-
यह यज्ञ भी तीन प्रकार का होता है। विष्णुयज्ञ, महाविष्णुयज्ञ, अतिविष्णुयज्ञ!

विष्णु यज्ञ में 5-7-8 अथवा 9 दिन में होता है। महाविष्णु याग 9 दिन में औरअतिविष्णु 9 दिन में अथवा 11 दिन में होता है!
विष्णु याग में 16 महाविष्णु-याग में  41 विद्वान होते हैं। अति विष्णु याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते है।

विष्णु याग में हवन सामग्री 11 मन ! महाविष्णु याग में 21 मन और अतिविष्णु याग में 55 मन लगती है।

17. हरिहर यज्ञ:-
हरिहर महायज्ञ में हरि (विष्णु) और हर (शिव) इन दोनों का यज्ञ होता है। हरिहर यज्ञ में 16 अथवा 21 विद्वान होते हैं!  हरिहर याग में हवन सामग्री 25 मन लगती हैं। यह महायज्ञ 9 दिन अथवा 11 दिन में होता है।

18. शिव शक्ति महायज्ञ:-
शिवशक्ति महायज्ञ में शिव और शक्ति (दुर्गा) इन दोनों का यज्ञ होता है। शिव यज्ञ प्रातः काल और शक्ति (दुर्गा) इन दोनों का यज्ञ होता है। शिव यज्ञ प्रातः काल और मध्याह्न में होता है। इस यज्ञ में हवन सामग्री 15 मन लगती है, तथा 21 विद्वान होते हैं! यह महायज्ञ 9 दिन अथवा 11 दिन में सुसम्पन्न होता है।

19. राम यज्ञ:-
राम यज्ञ विष्णु यज्ञ की तरह होता है। रामजी की आहुति होती है। रामयज्ञ में 16 अथवा 21 विद्वान होते हैं ! हवन सामग्री 15 मन लगती है। यह यज्ञ 8 दिन में होता है।

20. गणेश यज्ञ:-
गणेश यज्ञ में एक लाख (100000) आहुति होती है। 16 अथवा 21 विद्वान होते है। गणेशयज्ञ में हवन सामग्री 21 मन लगती है। यह यज्ञ 8 दिन में होता है।

21. ब्रह्म यज्ञ (प्रजापति यज्ञ):-
प्रजापत्ति याग में एक लाख (100000) आहुति होती हैं इसमें 16 अथवा 21 विद्वान होते है। प्रजापति यज्ञ में 12 मन सामग्री लगती है। 8 दिन में होता है।

22. सूर्य यज्ञ:-
सूर्य यज्ञ में एक करोड़ 10000000 आहुति होती है। 16 अथवा 21 विद्वान होते है। सूर्य यज्ञ  21 दिन में किया जाता है। इस यज्वैदिक धर्म मे यज्ञ को वेद का प्राण ओर आत्मा कहा गया है।।
यज्ञ क्या है ।
आज के इस वैज्ञानिक युग् में पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकृष्ट जनमानस कहता है यज्ञ क्या है ।

हमारे ग्रंथ इनके प्रमाणों से भरे हुए है ।

यज्ञो वै श्रेष्ठतरं कर्म।
शत,ब्रा,1,7,1,5 ।

यज्ञो वै विष्णु:
तैत्तरीय 1,7,4 ।

प्रजापतिर्वै यज्ञ:
गोपथ ब्रा.2,18 ।

इन्द्रो वै यज्ञ: ।

अथर्व वेद के अनुसार
अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः ।
संसार का उतपत्ति स्थान यही यज्ञ है ।

क्योकि यज्ञ को ईश्वर और धर्म का साक्षात प्रतीक कहा गया है ।

यज्ञ ओर महायज्ञ ये दो भेद प्रधान है ।

जो स्वयं के लिये तथा पारलौकिक कल्याण के लिये किया जाता है उसे यज्ञ संज्ञा ।

जो सर्वकल्याण विश्वकल्याणार्थ किया जाए वह महायज्ञ संज्ञक ।

श्रौत –
श्रुति प्रतिपादित यज्ञो को श्रोत यज्ञ
इसमे श्रुति प्रतिपादित मन्त्रो का ही मात्र उपयोग होता है ।

स्मृति
स्मृति प्रतिपादित यज्ञो को स्मार्त यज्ञ कहा जाता है ।
इसमे वैदिक पौराणिक एवं तांत्रिक मन्त्रो का ही प्रयोग होता है ।

ब्रह्म यज्ञ ,पितृयज्ञ,देवयज्ञ,भूतयज्ञ,मनुष्य यज्ञ,इनको पंच महायज्ञ की संज्ञा से विभूषित किया गया है ।

पंच सुनाजन्य ,दोषों की निवृत्ति के लिये प्रत्येक गृहस्थ आश्रमी को इन पञ्च महा यज्ञो  को नित्य करना  चाहिये ।

समस्त सनातनी हिन्दुओ का प्रमुख ग्रंथ वेद ही है उपरांत अन्य ग्रथ ।

वेदों में ही कर्मकांड
ज्ञानकाण्ड एवं उपासना कांड का विस्तृत विवरण है,क्योकि इस पवित्र भारत भूमि में आज से नही अनादिकाल से इस कृत्य को प्रधानता से किया जा रहा है ।

नायं लोकोस्त्ययज्ञस्य कुतोन्य:कुरु सत्तमः।
भा.गीता–4,30 ।

यज्ञ न करने वाले को यह मृत्यु लोक भी प्राप्त नही हो सकता फिर अन्य सुंदर लोक तो बात ही क्या ।

सनातन धर्म मे यज्ञो का बड़ा महत्व माना गया है ।
जैसे इस पर न्याय दर्शन,4,1,62 ।
मनुस्मृति1.23 ।
सिद्धांत शिरोमणि
गणिताध्याय मध्यमाधिकारस्य कालमानाध्याय (9पद्य) ।

गोपथ ब्राह्मण1-4-24 ।
गीता4-32 ।
आदि में यज्ञ के महत्व का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है ।
क्योकि यज्ञ से ही देवताओ ने स्वर्ग प्राप्त कर ,असुरों को परास्त कर अमरत्व पाया था ।

यज्ञ की सिद्धि से शत्रु भी मित्रवत हो जाते है ।

यज्ञ से सभी कष्टों का वज्रनाश होता है ।
तथा स्वर्ग की प्राप्ति भी होतिं है ।

यज्ञ से ही वृष्टि होकर मनुष्य का पालन पोषण होता है।

विधिवत यज्ञ न होना ही जलस्तर का कम होना है । (अपूर्ण-अयोग्य विधि)

यज्ञा:कल्याण हेतवः-6-1-8 विष्णु पु. ।

यज्ञा:पृथ्वीम् धारयन्ति.अर्थववेद- ।

यज्ञो विश्वस्व भुवनस्य नाभिः -अथर्ववेद-9-10-14 ।

यज्ञइश्च देवानाप्नोति. मत्स्यपुराण-143-33 ।

यज्ञ के बहुत से प्रयोजन हुआ करते है।
उनमे स्वर्ग की प्राप्ति भी एक परलौकिक प्रयोजन है ।

यैरीजाना:स्वर्गं यान्ति लोकम्।।
18-4-2अथर्ववेद ।

देवान् देवयजो यज्ञी -गीता 7-23 ।

देवताओ का निवास होता है स्वर्ग में।
दिवि देवा:,अथर्व–11-7-23 ।

यज्ञ का प्रयोजन मात्र स्वर्ग प्राप्ति नही होती अपितु विविध कामनाओं की प्राप्ति भी हुआ करती है ।

उसके भी कारण देव पूजा ही हुआ करती है।।

क्योकि देवता विविध कामनाओं को पूर्ण किया करते है ।।

ऋग्वेद–10-121-10
यत्कामास्ते जुहूयः तन्नो अस्तु।।
इस मंत्र से भी हवन द्वारा विविध कामनाओं की पूर्ति कही गयी है ।

वयं स्याम पतयो रयीणाम्।
इस उक्त मन्त्र के अंतिम अंश से यज्ञ से विभिन्न ऐश्वर्य की प्राप्ति बताई गई है ।

इस मंत्र में प्रजापति देवता का वर्णन है ।
इसलिये हवन में प्रजापतये स्वाहा कहा जाता है ।

चक्षुष्कामं या जपाञ्चकार ।
महाभाष्य1-1-63
ग्रामकामा यजेत्।
पुकामः पुत्रेष्टया यजेत्

Comments

  1. bahut sundar jankari di aapne mera to pura sandeh hi dur ho gya

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

श्रीकृष्ण की मधुर छवि के दर्शन कराती स्तुति 'मधुराष्टकम्'

श्री कृष्ण अष्टकम् स्त्रोत्र के पाठ मात्र भगवान श्रीकृष्ण सुभाषिस प्रदान करते है

60 संवत्सरों के नाम